थाली में मोटे अनाज की वापसी लाएगी स्वास्थ्य क्रांति...
ब्रेक के बाद - शक्तिसिंह परमार
आजादी के बाद खाद्यान्न संकट से जूझने वाले भारत ने कभी हरित क्रांति का आगाज किया था, जिसे आगे बढ़ाकर श्वेत क्रांति अर्थात् दुग्ध उत्पादन में भी आत्मनिर्भरता का रिकार्ड बनाया... अब भारत अपनी शाश्वत पहचान और पद्धति की तरफ भी कदम बढ़ा चुका है... 'श्रीअन्नÓ मोटा अनाज अर्थात् मिलेट्स का थाली में आना स्वास्थ्य क्रांति के लक्ष्य संधान की पहल है... भारत अब इस अभियान में भी सफल होगा, ऐसी उम्मीद बंध गई है...
दुनियाभर के लिए आज के दौर में 'श्रीअन्नÓ अर्थात् मोटा अनाज (मिलेट्स) सुपर फूड कहलाता है, वह भारत की परंपरागत जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा है... क्योंकि इसमें भरपूर पोषकता एवं स्वास्थ्यवर्धक गुण है, वह भी मौसम एवं भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार... गुणवत्ता के साथ ही पोषकता से भरपूर इस मोटे अनाज में वस्तुत: 8 फसलें या कहें अनाज आते हैं... जिसमें ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू समाहित हंै... कैल्शियम, आयरन से भरपूर ये सभी मोटे अनाज गरीब-अमीर सभी के स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और आज देश-दुनिया में इन मोटे अनाज को आहार में उन मरीजों को प्राथमिकता के साथ चिकित्सक डाइट में लिखते हैं, जो कोलेस्ट्राल, डाइबिटीज, हाईपरटेंशन, कुपोषण, मोटापे एवं अन्य तरह के संक्रामक रोगों से ग्रस्त हैं अथवा असाध्य बीमारियों से पीडि़त हैं... क्योंकि इन मोटे अनाज वाले भोज्य पदार्थों में सॉल्युबल फाइबर पाया जाता है, प्रोटीन, खनिज, कैरोटीन पर्याप्त रूप से होता है, हड्डियों को मजबूत करने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की गुणवत्ता भी समाहित है... सही मायने में मोटा अनाज आज दुनिया के लिए किसी औषधीय खाद्य पदार्थ से कम नहीं है... अगर कहें कि ये सभी मोटे अनाज भारत के लिए विश्व बाजार में एक स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद के रूप में नई क्रांति का कारक बन सकते हैं, तो इसमें भी अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए... क्योंकि केन्द्र सरकार भी मोटे अनाज को विश्व स्तर पर प्रोत्साहित करने की कार्य योजना पर तेजी से काम रही है... इसके लिए मध्यप्रदेश के इंदौर में 13 से 15 फरवरी 2023 के बीच जी-20 की अध्यक्षता के तहत कृषि कार्य समूह की पहली कृषि प्रतिनिधि सभा में 'श्रीअन्नÓ के संरक्षण, उत्पादन और इसके मूल्यवर्धित खाद्य उत्पादों के साथ पशु पालन, मत्स्य पालन पर भी आम राय के साथ भविष्य की मजबूत कार्य योजना बनी है...
अमेरिका से कभी लाल गेहूं लाकर अपनी भूख मिटाने वाले भारत ने हरित क्रांति का आगाज किया था... उस समय गेहूं उत्पादन का जो विश्व रिकार्ड भारत ने बनाना शुरू किया, उसी हरित क्रांति अभियान के बाद ही भारत के घरों से गेहूं, चावल, मक्का ने श्रीअन्न (मिलेट्स) को हिन्दुस्तानी थाली से बाहर करने की पटकथा भी लिख दी थी... इसका हमारी जीवनशैली एवं स्वास्थ्य के साथ ही परंपरागत खाद्यान्न उत्पादन पद्धति पर क्या दुष्प्रभाव होगा, इसका भी हमें अब पता चल रहा है... आज भले ही दुनियाभर में गेहूं, चावल, मक्का का सर्वाधिक उपभोग किया जाता हो, लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से इन सबसे कहीं बेहतर हमारे श्रीअन्न हंै... जो कि सिर्फ मनुष्य की स्वास्थ्य आवश्यकता की ही पूर्ति नहीं करते, बल्कि ये धरती की उर्वरक क्षमता, भौगोलिक संतुलन एवं पर्यावरण से जुड़ें पूरे पारिस्थितिकीय तंत्र को भी मजबूती प्रदान करते हैं... ज्वार, बाजरा के पौधे इतने मजबूत होते हैं कि तेज हवा या तूफान भी उनको प्रभावित नहीं करता... फिर इनकी लंबी मजबूत जड़े कम पानी में भी उत्पादन क्षमता को प्रभावित नहीं होने देती हैं... इन श्रीअन्न फसलों से सिर्फ हमें स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ या बीज ही प्राप्त नहीं होते, बल्कि इनसे प्राप्त होने वाला भूसा व पौधों का अन्य हिस्सा भी कृषकों के साथ ही अन्य उत्पादों के निर्माण का आधार बनता है... परंपरागत रूप से भारतीय ग्रामीण परिवेश में तो ज्वार, बाजरा के पौधों की पत्तेदार टहनियों से ही विवाह मंडपों का छायन होता है... फिर इनके बीजों व भुट्टों को वर्षभर सुरक्षित, संरक्षित करना भी आसान है... जबकि गेहूं, चावल या मक्का के भंडारण में हम अनेक तरह की समस्याओं का सामना करते हैं... अत: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष (इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर) 2023 के जरिये भारत अपनी शाश्वत खाद्य पहचान को समृद्ध करते हुए विश्व में स्वास्थ्य क्रांति का आगाज करने को तैयार है...
यह भारत की कृषि विविधता ही है कि आज प्रत्येक राज्य कम से कम एक या एक से अधिक मोटा अनाज (श्रीअन्न) उगाते हैं... गेहूं, चावल की तुलना में यह श्रीअन्न पोषकता का ही प्रधान नहीं है, बल्कि कृषक हितैषी इन फसलों, इसके उत्पादन, वितरण में भी कृषक बहुत ही सहज-सरल महसूस करते हैं... तभी तो केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अप्रैल 2018 से देश में मोटा अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए 'मिशन मोडÓ पर काम किया है... मोटे अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में समय-समय पर राहतकारी वृद्धि भी की गई है... राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत मोटे अनाज घटक को 14 राज्यों के 212 जिलों में क्रियान्वियत भी किया जा रहा है... सबसे प्रमुख बात है कि यह श्रीअन्न को उगाने वाले कृषकों को विशेष सरकारी सहायता की भी आजादी के बाद पहली बार व्यापक पहल हुई है... अत: देश में मिलेट्स मूल्यवर्धित श्रृंखला के लिए आज देशभर में 500 से अधिक स्टार्टअप काम कर रहे हैं... हो भी क्यों नहीं, जब मोटे अनाज के वैश्विक उत्पादन में अकेले भारत का हिस्सा 40 फीसदी है... और दुनिया में इसका उत्पादन व निर्यात करने में भी भारत प्रथम पायदान पर है... महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक ऐसे राज्य हंै, जिन्होंने इन सभी श्रीअन्न की एक विविधतापूर्ण एवं देशी बीज की गुणवत्तापूर्ण प्रजातियों को अपने तरीके से आगे भी बढ़ाया है... गेहूं, चावल, मक्का या फिर अन्य फास्ट फूड जहां हमारे स्वास्थ्य के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बीमारी घर का निमित्त बनते हैं, वहीं दूसरी तरफ श्रीअन्न हमें इन सभी समस्याओं से निजात दिलाने का पर्याय है... फिर यह कृषक हितैषी फसलें भी हैं, जो अपने प्रत्येक बीज, भूसा, रेसा, लकड़ी से अतिरिक्त आय का माध्यम भी बनते हैं... आज भारत में उसका प्राचीन श्रीअन्न पुन: थाली में लौट रहा है तो यह विश्व में स्वास्थ्य क्रांति का सुखद संकेत है...