
खा न-पान का एक नियम है - खाने को पीना चाहिए और पीने को खाना चाहिए, इसका तात्पर्य यह है कि ग्रहण किए जाने वाले भोजन को इतना चबाना चाहिए कि वह तरल पदार्थ में तब्दील हो जाए और पीने को अर्थात पेय पदार्थों को खाने से तात्पर्य यह है कि उन्हें इतना धीरे-धीरे पीना चाहिए कि उनमें मुंह की लार का अच्छे से समावेश हो सके। सामान्य तौर पर होता यह है कि लोग जल्दबाजी में खाना खाते हैं और पानी भी शीघ्रता से पी लेते हैं। इससे होता यह है कि हमारे ग्रहण किए जाने वाले भोजन व पानी में लार का उचित समावेश नहीं हो पाता और इस कारण ग्रहण किया गया भोजन अच्छे से पचता नहीं है और यदि पच भी जाता है, तो उससे हमारे शरीर को कोई विशेष लाभ नहीं होता। ग्रहण किए जाने वाले भोजन में लार का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है ।
यदि भोजन अच्छे से चबाकर किया जाता है तो उसमें लार का उचित समावेश होता है। भोजन में मुंह की लार मिलने से उसमें जो रासायनिक क्रिया होती है, उससे भोजन का स्वरूप ही बदल जाता है और फिर वह भोजन जब पचता है, तो औषधि के समान हमारे शरीर को स्वस्थ व पुष्ट बनाता है। जब कोई व्यक्ति अच्छे से चबाकर भोजन ग्रहण करता है, तो चबाने की प्रक्रिया से उसके मस्तिष्क की नस- नाडिय़ां सक्रिय हो जाती हैं, बारंबार चबाने की क्रिया से उसे भोजन ग्रहण करने की संतुष्टि मिलती है और इससे भोजन का पाचन भी अच्छा होता है। इसलिए अधिक भोजन ग्रहण करना जरूरी नहीं है, क्योंकि अधिक भोजन ग्रहण करने से शरीर को उसे पचाने में अधिक मेहनत लगेगी और ऊर्जा अधिक खर्च होगी तथा फायदा कम होगा। इसके विपरीत यदि उचित मात्रा में भोजन ग्रहण किया जाए और उसे अच्छे से चबाकर ग्रहण किया जाए, तो ऐसा भोजन आसानी से पचता है और शरीर को उसे पचाने में कम मेहनत लगती है और पचने के उपरांत ऐसे भोजन से हमें अधिक पोषक तत्व मिलते हैं, जो हमारे शरीर को स्वस्थ व निरोगी रखने में सहायक होते हैं।