ब्रेक
के बाद
शक्तिसिंह परमार
दे श के सामने एक बार फिर चिंता का भंवर इस तरह से भयावह आकार ले रहा है कि हर किसी की नजरों के सामने मार्च-अप्रैल 2020 की विकट स्थितियों के दृश्य अपने आप घूमने लगते हैं, जब देश में किसी घर में कोरोना पॉजिटिव की सूचना तो छोड़ो, किसी के घर के सामने स्वास्थ्य विभाग का अमला भी आकर खड़ा हो जाता था तो हड़कंप मच जाता था... और पखवाड़ेभर तक उस परिवार को छुआछूत जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता था... वह विकटपूर्ण काल निकल गया, लेकिन कोरोना वायरस (कोविड-19) का क्रूर खेल एक बार पुन: देश-दुनिया में तबाही मचाने पर उतारू है... क्योंकि भारत में दूसरी लहर तो दुनिया में पहली-तीसरी वहीं अमेरिका में चौथी लहर का सामना किया जा रहा है... भारत में सर्वाधिक कोरोना संक्रमित प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र है, लेकिन अन्य दर्जनभर राज्यों में भी स्थिति शनै: शनै: विकटपूर्ण हो रही है... क्योंकि दूसरी लहर वाला यह कोरोना वायरस दोहरे रूप के साथ अपनी विकरालता के जरिए आबादी के प्रत्येक आयु वर्ग को निशाना बना रहा है...
2020 की तुलना में 2021 में कोरोना की यह दूसरी लहर हर किसी का पसीना छुड़ा रही है... कोविड-19 के पांच म्युटेशन पाए गए हैं... जिनमें से 2 बदलाव एक ही वायरस में दिखलाई पडऩा चिंता का सबसे बड़ा कारण है... क्योंकि यह तेजी से रोग प्रतिरोधक क्षमता को ध्वस्त करने का कारण भी बन रहा है... यह दो म्युटेशन 'ई 484 क्यूÓ और 'एल 452 आरÓ एक ही वायरस में पाए गए हैं... यानी रोग से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता के मान से वायरस के ये दोनों म्युटेशन घातक सिद्ध हो रहे हैं... तभी तो स्टेट बैंक की रिपोर्ट का आंकलन यह दावा करता है कि आने वाले 100 दिन तक कोरोना की दूसरी लहर का असर रहेगा... जिसमें सर्वाधिक आबादी शहरों की प्रभावित होगी... हो भी रही है... ऐसे में इसका उपचार छोटे-छोटे प्रतिबंध, तालाबंदी (लॉकडाउन) न होकर व्यापक पैमाने पर टीकाकरण ही है... क्योंकि 15 फरवरी से कोविड-19 की दूसरी लहर को देखा जा रहा है... और जो आंकड़े अब प्रतिदिन 60 हजार के लगभग देश में आ रहे हैं, उससे आने वाले समय में 25 से 30 लाख लोग संक्रमित होने की आशंका है... करीब साढ़े पांच करोड़ लोगों को टीका लगने के बाद इसमें और तेजी लाकर ही इस दूसरी लहर से लड़ा जा सकता है... क्योंकि अभी 30 से 32 लाख लोगों को प्रतिदिन टीका लगाया जा रहा है... जबकि इसकी दर 40 से 45 लाख किए जाने पर ही 4 माह में 45 साल से ऊपर के लोगों का टीकाकरण संभव होगा... इस टीकाकरण अभियान को 1 अप्रैल से तभी सफलता मिलेगी, जब हम दोनों मोर्चों अर्थात सतर्कता व टीकाकरण पर एकजुटता के साथ काम करेंगे...
कोरोना की दूसरी लहर के साथ उत्सवों का सिलसिला भी प्रारंभ हो गया है... त्योहारी मौसम को देखकर बाजारों में मंदिरों, आस्था स्थलों के साथ ही कारोबारी क्षेत्रों में भीड़ का उमडऩा स्वाभाविक है... यही भीड़ कोरोना के प्रसार के लिए एक कड़ी (चेन) का काम करती है... जब तक यह कड़ी नहीं टूटेगी, दूसरी लहर का थमना तो दूर, विकराल होते जाना तय है... क्योंकि होली एक ऐसा पर्व है, जिसमें रंग उत्सव के साथ सामूहिक जनसमूह एकत्रित होना आवश्यक रीति-रिवाज है... फिर ईद, शब-ए-बारात, ईस्टर पर भी भीड़ का ही जबरिया आलम रहता है... इसके बाद आने वाले अन्य त्योहार में भी जनसमूह किस तरह से बाजार से लेकर अन्य अवसरों पर गुत्थमगुत्था देखे जाते हैं, हर किसी को इसका अच्छे से भान है... अगर ऐसे में राज्यों को जनसमूह वाली भीड़ को रोककर कोरोना की चेन तोडऩे के केन्द्र के सख्त निर्देश है, तो इस पर अमल जरूरी है...
उत्सवों का एक आर्थिक, सामाजिक, पारंपरिक और सांस्कृतिक गणित भी होता है... क्योंकि उत्सव अपने साथ न केवल उत्साह लेकर आते हैं, बल्कि बाजार और अर्थव्यवस्था को भी इसी से गति मिलती है... होली कहने को तो रंगों का त्योहार है, लेकिन इस दौरान जो रीति-रिवाज ग्रामों से लेकर शहरों तक होते हैं, उस पर होने वाला खर्च और उसके जरिए बाजार को मिलने वाली आर्थिक ऊर्जा का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है... यही नहीं, होलिका दहन और उसके बाद धुलेंडी के पूजन व अन्य आयोजन-प्रयोजन में सामान्य फल-फूल-मिठाई, रंग-पिचकारी, किल-पताशे की बिक्री से ही लाखों परिवार वर्षभर की अपनी जीविका का सपना लेकर दुकान सजाते हैं... अगर कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए होली अर्थात रंग पर्व के साथ सामान्यजन समझौता भी कर लें, तो आने वाले पर्वों पर उन्हें छूट मिल जाएगी, इसकी क्या गारंटी है..? उत्सवों पर प्रतिबंध लगाकर या उत्सवधर्मिता को बंधक बनाकर 'कोरोना हठÓ वाली प्रशासनिक शैली, राजनीतिक नियमावली कब तक चलती रहेगी..? जब भी त्योहार आते हैं तो कोरोना का बहाना बनाकर 'उत्सवों में रुकावट का खेद कब तक...Ó शासन-प्रशासन जताता रहेगा..? चुनावी रैली, आमसभा और भीड़ एकत्रित करते समय शासन-प्रशासन ये नियम क्यों भूल जाता है..?
कोविड-19 का विकट संकटकाल वर्षभर से देश-दुनिया को त्राहिमाम-त्राहिमाम के साथ शीर्षासन के लिए मजबूर किए हुए है... कोरोना के खिलाफ यह लड़ाई कालचक्र के साथ नित्य भयावह रूप ले रही है... क्योंकि लड़ाई एक ऐसे अदृश्य घातक शत्रु (कोविड-19) से है, जो अपनी संरचनात्मक प्रकृति लगातार बदल रहा है... ऐसे में कहें कि घात लगाकर मानव जीवन पर हमलावर हुआ यह अदृश्य राक्षस अभी कब तक पूरे विश्व को खून के आंसू रुलाएगा, कह नहीं सकते..! पूरी दुनिया की व्यवस्था को रद्दोबदल करके नए तरह की व्यवस्था स्थापना का निमित्त बना यह कोविड-19 विध्वंस के साथ सृजन-निर्माण का कारक भी बन रहा है... 21वीं सदी के लिए इससे विकट परिस्थितियां निर्मित नहीं होंगी... ऐसी प्रार्थना उस अदृश्य ईश्वर से है... अगर कोरोना को भी मात देकर कोई नया इससे भी विकट भयावह संकट दुनिया की दहलीज पर दस्तक देगा तो सच मानिए वह दुनिया के खत्म होने या कहें कयामत की घड़ी ही मानी जाएगी... क्योंकि कोविड-19 के भयावह बिगाड़ का सामना करके भी भारत ने दुनिया को मानव जीवन सुरक्षा और संकट में लडऩे, चुनौती को अवसर मानकर लोगों को हर वीभत्स कालखंड से भिड़ जाने की जो मजबूत मानसिक ताकत प्रदान की है, वह गजब है... तभी तो दुनिया की सबसे बड़ी तालाबंदी को झेलने के बाद भी भारत आर्थिक स्थिति मजबूत करने, कोरोना से कम से कम मौत की रिकार्ड उपलब्धि हासिल करने... यहां तक कि संक्रमण की दर को भारत ने आबादी एवं प्रतिकूल स्थितियों के बाद भी नियंत्रित करने का कमाल करके दिखाया है... इससे भी बढ़कर सबसे ज्यादा संक्रमितों ने भारत में ही स्वस्थ होने का रिकार्ड बनाया... और इन सभी से परे इस चुनौतिपूर्ण कालखंड में भारत की उपलब्धि रही, वह यही है कि मार्च 2020 में जिस कोविड-19 राक्षस से लडऩे के लिए भारत के पास प्राथमिक हथियार (मास्क, सेनिटाइजर, पीपीई किट) तक नहीं थे, वहीं भारत मार्च 2021 में दुनिया के दो दर्जन देशों को टीका मुफ्त दे चुका है... भारत में साढ़े पांच करोड़ से अधिक लोगों को टीका लगाया जा चुका है... ऐसे में अगर रंग उत्सव 'होलीÓ व अन्य उत्सवों को इस बार हमें औपचारिक रस्म के साथ मनाना पड़े तो बुराई नहीं है..! क्योंकि देश की सुरक्षा कोरोना से करनी है... जिन्दगियां बचानी हैं तो मास्क, दो गज दूरी और भीड़ से दूर रहकर सतर्कता के नियमों का जनदायित्व नागरिकों को राष्ट्र धर्म मानकर निभाना होगा... कोरोना से बच जाएंगे तो त्योहार कितनी ही बार मना लेंगे... लेकिन शासन-प्रशसान को भी कोरोना से लडऩे के लिए उत्सवों में रुकावट का खेद जताने के बजाय अपनी कमियों-खामियों पर भी निगाहें डालना होंगी...