प्रेरणादीप
एक बार डॉक्टर हेडगेवारजी के मित्र प्रहलाद पंत फड़णवीस ने उनसे पूछा - इतनी उमर हो गई, तुम अभी तक संध्या-पूजा, नाम-स्मरण आदि कुछ भी नहीं करते। क्या तुम्हें भगवान से डर नहीं लगता, क्या आपको उसके दरबार में नहीं जाना है? क्या आपको उसके सामने मुखातिब नहीं होना है? डॉक्टरजी ने तुरंत उत्तर दिया - आपका कहना सही है, पर यमराज के सामने मुझे खड़ा किया, तो वह मेरा क्या करेगा? कारण! मैंने अपने जीवन में स्वत: के लिए तो कुछ किया ही नहीं है। संसार में जो अपने लिए जीते हैं, उन्हें ही इन समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है, जो संसार में संतभाव यानी साक्षीभाव से जिया है, उसे काहे का और कैसा भय। क्या मार सकेगी मौत उसे औरों के लिए जो जीता है। ऐसे महापुरुष के लिए जीना और मरना एक समान है। प्रसन्नता भी जीने-मरने में समान। जीवन-मौत एक ही सिक्के के दो पहलू ही तो हैं।